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14 Mar 2025, Fri

राजस्थान के नागौर जिले के पूर्वी छोर पर स्थित थांवला ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण कस्बा है। अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध यह स्थान पद्मपुराण में वर्णित तीर्थराज पुष्कर की चौबीस कोसीय परिक्रमा का हिस्सा है। यहां के धार्मिक स्थल, ऐतिहासिक शिलालेख, और स्थापत्य कला के अद्भुत उदाहरण इस स्थान को विशिष्ट पहचान देते हैं।

थांवला: इतिहास और विरासत

थांवला का इतिहास चौहान वंश से जुड़ा है। इस क्षेत्र को ‘मारवाड़ का मालवा’ कहा जाता है, क्योंकि यहां की भौगोलिक स्थिति और वातावरण मालवा क्षेत्र से मिलता-जुलता है। अरावली पर्वतमाला के बीच स्थित इस गांव में कई ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल हैं, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। यहां राजा भृर्तहरिजी की गुफा, कंकेड़िया भैंरूजी, बालाजी सनेड़िया और राता ढूंढा माताजी मंदिर जैसे स्थल प्रसिद्ध हैं।

थांवला का प्राचीन शिव मंदिर

थांवला का शिव मंदिर राजस्थान की समृद्ध धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह मंदिर 10वीं या 11वीं शताब्दी में नागर शैली में निर्मित हुआ था और अपने वास्तुशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर के चारों ओर देवी-देवताओं की खूबसूरती से उकेरी गई मूर्तियां हैं, हालांकि समय के साथ इनमें से कई खंडित हो गई हैं।

गर्भगृह और धार्मिक महत्व

मंदिर का गर्भगृह लगभग 8 फीट ऊंची छत के साथ बना हुआ है, जिसमें शिवलिंग स्थापित है। यहां की मूर्तियों और शिलालेखों में शिव और सप्त मातृकाओं की छवियां अंकित हैं, जो इस मंदिर की धार्मिक महत्वता को और बढ़ाती हैं।

ऐतिहासिक शिलालेख और चौहानकालीन अभिलेख

थांवला में दो महत्वपूर्ण चौहानकालीन शिलालेख मिले हैं। इनमें से एक विक्रम संवत 1013 (956 ई.) का है। यह अभिलेख प्रारंभिक देवनागरी लिपि में लिखा गया है और इसमें मंदिर को दान दिए जाने का उल्लेख मिलता है।

इस अभिलेख के अनुसार, चौहान शासक महाराजधिराज सिंहराज इस क्षेत्र के तत्कालीन शासक थे। उन्होंने स्वयं को सूर्य का परम भक्त बताया है और अपने शासन को भुजबल (शक्ति) से प्राप्त करने का उल्लेख किया है। इस अभिलेख में उनके अधिकारी चचेरक के पुत्र दुर्गराज का भी नाम मिलता है, जो इस क्षेत्र का महंतक (शासक) था।

शिलालेख में यह उल्लेख है कि मंदिर के प्रबंधन के लिए गोष्ठिक (समिति) का गठन किया गया था। इसमें विभिन्न लोगों ने मंदिर संचालन और पूजा-अर्चना के लिए दान दिए थे। यह शिलालेख बताता है कि तत्कालीन समाज में मंदिरों के सुचारू संचालन के लिए संगठित व्यवस्था की जाती थी।

शिलालेख की कुछ प्रमुख पंक्तियां इस प्रकार हैं:

“संवत् 1013 पौष सुदि 4 महाराजाधिराज श्रीसिंहराज महंतक दुर्गराज चचेरक सुतश्‍च पुण्‍य यशोभिवर्द्धयेन मांल्‍हण दत्ति नंदानि (नंदाग्रामे)…”

इसका अर्थ है कि सिंहराज और उनके अधिकारी दुर्गराज ने इस मंदिर के लिए दान दिया था, जिससे मंदिर के संचालन में सहायता मिल सके।

थांवला की ऐतिहासिक धरोहर और संरक्षण की आवश्यकता

थांवला का शिव मंदिर और इसके शिलालेख इस क्षेत्र के ऐतिहासिक वैभव और धार्मिक परंपराओं को दर्शाते हैं। हालांकि, समय के साथ यह मंदिर और इसके कई शिलालेख क्षतिग्रस्त हो चुके हैं, जिनके संरक्षण की आवश्यकता है।

यह स्थल न केवल राजस्थान की ऐतिहासिक धरोहर है बल्कि यह धार्मिक आस्था का भी महत्वपूर्ण केंद्र है। प्रशासन और स्थानीय समुदाय को मिलकर इस धरोहर को सहेजने और इसके महत्व को देश-दुनिया तक पहुंचाने की दिशा में कार्य करना चाहिए।

थांवला न केवल एक ऐतिहासिक स्थल है बल्कि यह धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इसका शिव मंदिर और यहां के शिलालेख चौहानकालीन स्थापत्य कला और धार्मिक व्यवस्था का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यदि इन ऐतिहासिक स्थलों का उचित संरक्षण किया जाए, तो यह राजस्थान के प्रमुख पर्यटन स्थलों में अपनी अलग पहचान बना सकता है।

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