
✍️ लेखक – (नितिन सिंह/vbt news)
भारतवर्ष की पवित्र भूमि में जब आस्था और उत्सव एक साथ उमड़ते हैं, तो वहां की हवाओं में भी भक्ति की सुगंध घुल जाती है। ओडिशा के पुरी शहर में हर वर्ष होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा ऐसा ही एक अनुपम आयोजन है, जहां धर्म, संस्कृति और परंपरा एक विराट स्वरूप धारण कर लेती है। यह यात्रा केवल तीन रथों की सवारी नहीं, बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं के हृदय की धड़कन बन चुकी है।
🛕 भगवान जगन्नाथ – एक दिव्य स्वरूप
भगवान जगन्नाथ को विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का रूप माना जाता है। उनके साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी रथ यात्रा में सम्मिलित होती हैं। इन तीनों की मूर्तियाँ पारंपरिक लकड़ी से बनाई जाती हैं और हर 12 वर्षों में इन मूर्तियों का नवकलेवर (नया शरीर) किया जाता है – यह एक विशेष परंपरा है जिसे भक्त अपने जीवन का सौभाग्य मानते हैं।
🚩 रथ यात्रा का आरंभ – एक ऐतिहासिक परंपरा
पुरी की रथ यात्रा का इतिहास हजारों वर्षों पुराना है। ऐसी मान्यता है कि जब भगवान श्रीकृष्ण द्वारका से अपने ननिहाल मथुरा गए थे, तो वह रथ पर सवार होकर निकले थे। उसी भाव को पुनर्जीवित करने के लिए रथ यात्रा का आयोजन होता है, जहां भगवान भक्तों के बीच आते हैं और उन्हें अपने सान्निध्य का आशीर्वाद देते हैं।
पुरी के श्रीमंदिर से लगभग तीन किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर तक भगवान अपने रथ पर सवार होकर जाते हैं। यह यात्रा नौ दिनों की होती है, जिसके बाद भगवान वापस श्रीमंदिर लौटते हैं – जिसे ‘बहुदा यात्रा’ कहा जाता है।
🛞 तीनों रथों की भव्यता
हर वर्ष तीन भव्य रथ तैयार किए जाते हैं, जिनका निर्माण विशेष रूप से चुने गए कारीगरों द्वारा पारंपरिक विधि से किया जाता है। हर रथ की अपनी पहचान और विशेषता होती है:
- नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ का रथ):
- ऊँचाई: लगभग 45 फीट
- पहिए: 16
- रंग: लाल और पीला
- तालध्वज (बलभद्र जी का रथ):
- ऊँचाई: लगभग 44 फीट
- पहिए: 14
- रंग: लाल और हरा
- दर्पदलन (सुभद्रा जी का रथ):
- ऊँचाई: लगभग 43 फीट
- पहिए: 12
- रंग: लाल और काला
इन रथों को भक्तजन रस्सियों से खींचते हैं, और यह रस्सियाँ भी पवित्र मानी जाती हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि जो इस रस्सी को एक बार छू ले, उसके सारे पाप कट जाते हैं।
🌍 विश्वभर से उमड़ती है श्रद्धा की लहर
पुरी की रथ यात्रा में केवल भारत से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु आते हैं। इस आयोजन को देखने और इसमें भाग लेने के लिए हर वर्ष लगभग 10 लाख से ज्यादा लोग पुरी पहुँचते हैं। इसे देखने के लिए घरों, होटलों और मंदिरों की छतें तक भर जाती हैं।
यह यात्रा सिर्फ धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि विश्व बंधुत्व और सर्वधर्म समभाव का प्रतीक बन चुकी है। अमेरिका, लंदन, जर्मनी, रूस, जापान जैसे देशों में भी अब हर वर्ष रथ यात्राएं निकाली जाती हैं – जिनमें स्थानीय लोग भी बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।
📜 मान्यताएँ और चमत्कार
रथ यात्रा से जुड़ी कई लोक-मान्यताएँ हैं:
- कहा जाता है कि रथ यात्रा में भाग लेने से अगले सात जन्मों तक मोक्ष मिलता है।
- यह भी मान्यता है कि जो भक्त रथ को खींचते हैं, उन्हें भगवान अपने हाथों से आशीर्वाद देते हैं।
- कई लोग मानते हैं कि रथ यात्रा के समय जब अचानक वर्षा होती है, तो वह भगवान जगन्नाथ के स्वागत की दिव्य वर्षा होती है।
🎭 संस्कृति और कला का संगम
रथ यात्रा केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह एक लोक कला और सांस्कृतिक परंपराओं का जीवंत रंगमंच भी है। यात्रा के दौरान लोक गीत, ओडिशा का प्रसिद्ध गोटीपुआ नृत्य, जन नाटक, पंथी गीत और भजन मंडलियाँ पूरे वातावरण को संगीतमय बना देती हैं। रथों की सजावट, हस्तकला, और पारंपरिक चित्रकला भी दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती है।
📺 रथ यात्रा का प्रसारण
आधुनिक युग में तकनीक ने रथ यात्रा को और व्यापक बना दिया है। आज विभिन्न टीवी चैनल्स और ऑनलाइन प्लेटफार्म्स के माध्यम से रथ यात्रा का सीधा प्रसारण पूरी दुनिया में देखा जाता है। सोशल मीडिया पर लाखों लोग इस पल को साझा करते हैं, और डिजिटल भक्ति का नया युग जन्म लेता है।
🤲 रथ यात्रा का संदेश
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हमें यह संदेश देती है कि भगवान केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि अपने भक्तों के बीच भी निवास करते हैं। यह यात्रा भक्ति, समानता, सेवा, प्रेम और विश्व बंधुत्व का प्रतीक है।
रथ यात्रा में हर जाति, धर्म, वर्ग और भाषा के लोग एक साथ आते हैं – यही भारत की असली ताकत है, यही सनातन संस्कृति की आत्मा है।
✨ समापन विचार:
पुरी की रथ यात्रा केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि एक भाव है – जिसमें आस्था रथ बन जाती है, और हर भक्त उसका सारथी। यह यात्रा हर वर्ष हमें यह याद दिलाती है कि भगवान हमेशा हमारे करीब हैं – बस श्रद्धा की डोर से उन्हें अपने हृदय तक खींचना होता है।