
रेगिस्तान की रेत में जब सूर्य की किरणें चमकती हैं, तो लगता है जैसे सोने की चादर धरती पर बिछी हो। इस धरती ने सिर्फ युद्ध, शौर्य और बलिदान की गाथाएं नहीं दीं, बल्कि यहां की रेत ने प्रेम की ऐसी अमर कहानियां भी जनमीं, जो आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं। ऐसी ही एक अमर प्रेम कथा है – मूमल और महेन्द्रा की। यह कहानी सिर्फ प्रेम की नहीं है, यह विश्वास, त्याग, प्रतीक्षा और भ्रम की एक करुण गाथा भी है।
कहानी की पृष्ठभूमि
यह कथा राजस्थान और सिंध की सीमाओं पर बसे लोदी नामक क्षेत्र की है। वहां एक राजा रहता था जिनकी सात सुंदर बेटियां थीं – मूमल, नूरल, सुरजन, सोहराब, मरजन, तूरन और बूमल। इन सातों बहनों में मूमल सबसे सुंदर, चतुर और जादू-विद्या में निपुण थी। वह अपने सौंदर्य, बुद्धि और रहस्यमयी खेलों के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध थी।
मूमल और उसकी बहनें एक किले में रहती थीं जिसे “लोधरवा का महल” कहा जाता था। यहां आने वाले राजाओं और वीरों के लिए एक अनोखा खेल रचाया जाता – एक भूलभुलैया। यह खेल इस प्रकार था कि यदि कोई युवक उस भूलभुलैया को पार करके मूमल तक पहुंच जाए, तो मूमल उसे पति रूप में स्वीकार कर लेती। लेकिन आज तक कोई भी युवक इस कार्य में सफल नहीं हो पाया था।
महेन्द्रा का आगमन
मारवाड़ (वर्तमान जोधपुर) का एक वीर राजकुमार था – महेन्द्रा। वह बल, बुद्धि और रूप में अद्वितीय था। जब उसने मूमल के सौंदर्य और चुनौती के बारे में सुना, तो वह स्वयं को रोक न सका। अपने भाई रूमल और मित्रों के साथ वह लोधरवा पहुंचा।
मूमल ने जैसे ही महेन्द्रा को देखा, उसका हृदय डोल गया। पहली ही दृष्टि में वह जान गई कि यही युवक उसका जीवनसाथी बनने योग्य है। उसने अपने जादुई भूलभुलैया में कुछ रास्ते आसान कर दिए, ताकि महेन्द्रा तक पहुंचना संभव हो। महेन्द्रा ने अपने साहस, चतुराई और किस्मत से मूमल तक पहुंचने में सफलता पाई।
उनकी पहली भेंट में ही प्रेम अंकुरित हो चुका था। मूमल और महेन्द्रा एक-दूसरे के प्रेम में पूरी तरह डूब गए। मूमल ने उसे अपने दिल का राजा बना लिया और दोनों ने सात जन्मों तक साथ निभाने की कसमें खाईं।
वियोग का आरंभ
महेन्द्रा को मूमल से मिलने हर रात लोधरवा आना होता था। वह अपने ऊंट पर रात को आता और सुबह से पहले लौट जाता, ताकि किसी को भनक न लगे। मगर एक दिन ऐसा हुआ कि अचानक नदी में बाढ़ आ गई और वह रात को मूमल से मिलने नहीं आ सका। मूमल पूरी रात उसकी प्रतीक्षा करती रही, पर वह नहीं आया।
अगले दिन मूमल ने सोचा – यदि महेन्द्रा ने मुझसे प्रेम किया होता, तो वह किसी भी हालत में आता। उसका दिल दुखी हुआ और उसने एक योजना बनाई – अपने मित्र रूमल को स्त्री-वेश में सुलाकर महेन्द्रा की ईर्ष्या परखने का खेल रच दिया।
कुछ समय बाद जब महेन्द्रा आया और उसने किसी पुरुष को मूमल के पलंग पर देखा – स्त्री-वेश में सोया हुआ – तो उसका दिल टूट गया। उसने बिना कुछ कहे तलवार निकाली, पर मूमल की चीख ने उसे रोक दिया। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसका विश्वास चूर-चूर हो गया था।
वियोग का दर्द
महेन्द्रा गुस्से और आहत हृदय के साथ मारवाड़ लौट गया। उसने मूमल को धोखेबाज़ समझ लिया और किसी से बात नहीं की। उधर मूमल, जो खेल में उसे परखना चाहती थी, अब पछतावे और पश्चाताप में जल रही थी।
वह दिन-रात रोती रहती और तिल-तिल कर प्रेम की अग्नि में जलती रही। उसने खाना-पीना छोड़ दिया। उसका सौंदर्य मुरझाने लगा। उसकी बहनों ने बहुत समझाया, लेकिन उसका दिल महेन्द्रा के बिना अधूरा था।
मूमल ने आखिर तय किया कि वह महेन्द्रा से माफी मांगेगी और उसे सब कुछ सच-सच बता देगी। वह पैदल ही रेगिस्तान के रास्ते जोधपुर की ओर निकल पड़ी। महीनों की यात्रा के बाद वह महेन्द्रा के महल पहुंची।
पुनर्मिलन और दुखांत
जब महेन्द्रा ने मूमल को देखा, तो उसका क्रोध भीग गया। मूमल ने रो-रोकर सारी बात कही। महेन्द्रा का हृदय पिघल गया। दोनों फिर से मिल गए। कुछ दिन उन्होंने साथ बिताए, मगर तब तक बहुत कुछ बदल चुका था।
मूमल की तबीयत बिगड़ चुकी थी। प्रेम का ताप, वियोग की अग्नि और लंबी यात्रा ने उसे निढाल कर दिया था। महेन्द्रा ने वैद्य बुलाए, दवाएं दिलाई, पर मूमल की सांसें अब माफ़ी लेकर ही थमने को थीं।
एक दिन मूमल ने महेन्द्रा का हाथ पकड़ा और कहा – “मेरे प्रेम की अंतिम परीक्षा यही है, कि तुम मेरे बिना जी पाओ।”
महेन्द्रा बोला – “मूमल, तुम्हारे बिना जीवन शेष नहीं, केवल एक शेष इंतजार है मृत्यु का।”
मूमल ने महेन्द्रा की गोद में प्राण त्याग दिए। महेन्द्रा ने उसे अंतिम बार चूमा, फिर उसी आग में कूद गया, जिसमें मूमल का दाह संस्कार किया जा रहा था।
लोक में अमर प्रेम
आज भी राजस्थान और सिंध के कुछ इलाकों में मूमल-महेन्द्रा की इस कथा को बड़े प्रेम और सम्मान से याद किया जाता है। लोग कहते हैं कि लोधरवा की रेत पर आज भी रात में कोई प्रेमी सच्चे दिल से पुकारे, तो मूमल की रूह उसकी पुकार सुन लेती है।
इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि प्रेम सच्चा हो तो जीवन और मृत्यु, दोनों के पार जा सकता है, लेकिन उसमें विश्वास की डोर टूटे, तो पूरा जीवन रेत-सा बिखर जाता है।
उपसंहार
मूमल-महेन्द्रा की कथा सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं, बल्कि यह राजस्थान की लोकआत्मा की गहराइयों में बसी हुई एक चेतावनी है –
“जहां प्रेम हो, वहां संदेह न हो। और जहां संदेह हो, वहां प्रेम की नींव खोखली होती है।”
मूमल की आंखों से बहा हर आंसू आज भी उस रेत में जज़्ब है। और महेन्द्रा का अंतिम आलिंगन आज भी हवाओं में गूंजता है…