साहित्य अकादेमी की राष्ट्रीय अनुवाद कार्यशाला: 8 भारतीय भाषाओं की 14 कहानियों का राजस्थानी में अनुवाद
मेड़तासिटी/डीडी चारण की रिपोर्ट ।
साहित्य अकादेमी के उत्तर मंडल के तत्वावधान में पंजाबी भाषा परामर्श मंडल एवं कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पंजाबी विभाग द्वारा कुरुक्षेत्र में आयोजित तीन दिवसीय बहुभाषी राष्ट्रीय अनुवाद कार्यशाला साहित्यिक दृष्टि से ऐतिहासिक और सार्थक साबित हुई। इस कार्यशाला में देश के विभिन्न हिस्सों से आए 24 साहित्यकारों ने भाग लिया।
मेड़ता सिटी के जाने-माने राजस्थानी रचनाकार डॉ. रामरतन लटियाल ने बताया कि इस बहुभाषी कार्यशाला का उद्घाटन साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष व ख्यातनाम रचनाकार डॉ. माधव कौशिक की अध्यक्षता में हुआ। उद्घाटन समारोह में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर (डॉ.) सोमदेव सचदेवा मुख्य अतिथि थे, जबकि प्रतिष्ठित पंजाबी कवि-आलोचक प्रोफेसर (डॉ.) रवेल सिंह विशिष्ट अतिथि रहे।
इस राष्ट्रीय अनुवाद कार्यशाला में राजस्थानी के अलावा हिन्दी, उर्दू, डोगरी, संस्कृत, अंग्रेजी, कश्मीरी और पंजाबी भाषाओं के रचनाकारों ने अपनी-अपनी भागीदारी निभाई। राजस्थान से डॉ. रामरतन लटियाल, डॉ. कृष्ण कुमार आशू और नगेंद्र नारायण किराड़ू ने राजस्थानी भाषा का प्रतिनिधित्व किया।
डॉ. रामरतन लटियाल (मेड़तासिटी) ने उर्दू और संस्कृत की दो तथा पंजाबी की एक कहानी का राजस्थानी भाषा में अनुवाद किया। नगेंद्र नारायण किराड़ू (बीकानेर) ने कश्मीरी और हिन्दी की दो तथा पंजाबी की एक कहानी का अनुवाद राजस्थानी में किया। इसी प्रकार डॉ. कृष्ण कुमार आशू (श्रीगंगानगर) ने डोगरी और अंग्रेजी की दो कहानियों का राजस्थानी भाषा में अनुवाद किया।
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा इन अनूदित कहानियों का एक संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित करवाया जाएगा, जिसमें देश की सात भाषाओं की कहानियां राजस्थानी भाषा के पाठकों को पढ़ने के लिए उपलब्ध होंगी। यह संग्रह राजस्थानी साहित्य प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि सिद्ध होगा।
कार्यशाला में उपस्थित सभी साहित्यकारों ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर भाषाई आदान-प्रदान और साहित्यिक संवर्धन के लिए महत्वपूर्ण प्रयास बताया। इस आयोजन को साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष डॉ. माधव कौशिक और राजस्थानी भाषा संयोजक प्रोफेसर (डॉ.) अर्जुनदेव चारण की प्रेरणा से आयोजित किया गया।
कार्यशाला के समापन समारोह में संयोजक डॉ. कुलदीप सिंह ने तीन दिवसीय आयोजन की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करते हुए सभी रचनाकारों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। प्रतिभागियों ने आयोजकों के इस ऐतिहासिक प्रयास के लिए आभार व्यक्त किया।
यह राष्ट्रीय अनुवाद कार्यशाला न केवल विभिन्न भाषाओं के बीच सेतु बनाने में सफल रही, बल्कि इसने राजस्थानी भाषा की समृद्ध परंपरा को भी राष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान देने का कार्य किया।
