संस्कृत शिक्षा शिक्षक संघ का जिला स्तरीय सम्मेलन – मेड़ता सिटी
डी.डी. चारण की रिपोर्ट / मेड़ता सिटी
मेड़ता सिटी। राजस्थान संस्कृत शिक्षा विभाग के शिक्षक संघ के बैनर तले दो दिवसीय जिला स्तरीय शैक्षिक सम्मेलन का आयोजन बड़े उत्साह और जोश के साथ हुआ। इस सम्मेलन में जिलेभर के संस्कृत विद्यालयों के शिक्षक और शिक्षाविद एक मंच पर जुटे और संस्कृत शिक्षा के विकास पर गहन चिंतन किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रधानाचार्य त्रिलोकचंद तिवारी ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षक और शिक्षार्थी दोनों के हितों के लिए इस तरह के संगठनात्मक सम्मेलन आवश्यक हैं। उन्होंने बताया कि संगठन में रहकर कार्य करने से शिक्षा जगत में क्रांतिकारी परिवर्तन संभव है।
जिला अध्यक्ष गणेश राम जांगु ने अपने संबोधन में सरकार से अपील की कि संस्कृत शिक्षा में सुधार के लिए सभी रिक्त पदों को शीघ्र भरा जाए। उन्होंने कहा कि संगठन सरकार को सामूहिक मांग पत्र भेजेगा ताकि संस्कृत विद्यालयों में नामांकन बढ़ सके और सामान्य शिक्षा की तरह सभी कल्याणकारी योजनाएं संस्कृत शिक्षा पर भी समान रूप से लागू हों।
उन्होंने डीबीटी (Direct Benefit Transfer) से संबंधित एक अहम मुद्दा उठाते हुए कहा कि सरकार ने विभिन्न संवर्गों को अलग कर दिया है। उनकी मांग है कि ओबीसी और जनरल वर्ग के विद्यार्थियों को भी डीबीटी में शामिल किया जाए। साथ ही निशुल्क पाठ्यपुस्तक वितरण की व्यवस्था को भी समयबद्ध और व्यवस्थित बनाने पर बल दिया।
प्रदेश कोषाध्यक्ष महेंद्र पारीक ने कहा कि संस्कृत शिक्षा को सशक्त बनाने के लिए सभी शिक्षकों को एकजुट होकर कार्य करना होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संगठन हर शिक्षक के साथ खड़ा है और किसी को भी किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करने दिया जाएगा।
आयोजन स्थल विद्यालय के प्रधानाचार्य रामनिवास बाजिया ने इस अवसर पर कहा कि सरकार को अनार्थिक और शिक्षक विहीन विद्यालयों में तुरंत शिक्षकों की नियुक्ति करनी चाहिए। उन्होंने हाल ही में विद्यालयों के जीर्णोद्धार के लिए आवंटित की जा रही राशि पर भी अपनी चिंता व्यक्त की और मांग की कि इसमें किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाए।
सम्मेलन के समापन सत्र में बाजिया ने आए हुए सभी शिक्षकों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन संस्कृत शिक्षा के भविष्य को मजबूत करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
यह सम्मेलन न केवल संस्कृत शिक्षा के हितों को लेकर आवाज उठाने का मंच बना, बल्कि इससे यह संदेश भी गया कि यदि शिक्षक संगठित होकर कार्य करें तो शिक्षा के हर क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है
