सिंधु जल संधि विवाद: भारत ने पाकिस्तान को UN में फटकारा
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📰 सिंधु जल संधि पर भारत ने पाकिस्तान को यूएन में फटकारा – भरोसा आतंक से नहीं, सहयोग से बनता है
जिनेवा (ईएमएस)। भारत ने पाकिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में जोरदार हमला बोला है। यह हमला अप्रैल में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल संधि को निलंबित करने के विवाद के बाद सामने आया है। पाकिस्तान ने संधि निलंबन पर हंगामा किया, लेकिन भारत ने स्पष्ट किया कि स्थायी और प्रभावी सहयोग भरोसे पर टिका होता है, आतंक पर नहीं।
जिनेवा में परिषद के सत्र को संबोधित करते हुए भारतीय राजनयिक अनुपमा सिंह ने कहा कि 1960 में सिंधु जल संधि दोस्ती और आपसी सहयोग की भावना से की गई थी। लेकिन उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 1960 की दुनिया और आज की दुनिया में काफी अंतर है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आतंकवाद के साथ संधि का पालन असंभव है और भारत का रुख स्पष्ट है कि आतंक और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते।
अनुपमा सिंह ने कहा कि उन्हें यह देखकर गहरी चिंता हो रही है कि कुछ प्रतिनिधिमंडल जानबूझकर परिषद की कार्यवाही को राजनीतिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं। उनके अनुसार, ऐसे कदम न केवल इस मंच की गंभीरता को कमजोर करते हैं बल्कि असली मुद्दों से ध्यान भी भटकाते हैं। उन्होंने कहा, “जो पक्ष बार-बार संधि की मूल भावना का उल्लंघन करता है, उसे दूसरों पर आरोप लगाने का कोई अधिकार नहीं है।”
सिंधु जल संधि के महत्व और प्रासंगिकता पर भी अनुपमा सिंह ने प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन, तकनीकी प्रगति और स्वच्छ ऊर्जा की बढ़ती जरूरतें यह दर्शाती हैं कि संधि की समीक्षा और अपडेट आवश्यक है। उनका कहना था कि केवल भरोसे और आपसी सहयोग के साथ ही जल संसाधनों का स्थायी प्रबंधन संभव है, आतंक और हिंसा के सहारे कोई दीर्घकालिक समाधान नहीं निकाला जा सकता।
भारत ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान से लगातार हो रहे राज्य प्रायोजित आतंकवाद के चलते संधि का पालन मुश्किल हो रहा है। अनुपमा सिंह ने कहा कि असली सहयोग तभी संभव है जब दोनों पक्ष भरोसे और पारदर्शिता के साथ काम करें। उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत हमेशा वार्ता और सहयोग के पक्ष में है, लेकिन जब तक आतंक और हिंसा की घटनाएं जारी हैं, तब तक किसी भी समझौते पर भरोसा करना मुश्किल है।
इस दौरान भारतीय राजनयिक ने यह भी संकेत दिया कि सिंधु जल संधि केवल भारत-पाकिस्तान के बीच जल संसाधनों का प्रबंधन नहीं है, बल्कि यह विश्वसनीयता और दीर्घकालिक सहयोग की भी कसौटी है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जल, ऊर्जा और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग तभी सार्थक होगा जब दोनों देशों के बीच भरोसा और सुरक्षा का माहौल सुनिश्चित हो।
भारत की यह कड़ी प्रतिक्रिया इस बात का संकेत है कि जल संसाधनों और द्विपक्षीय समझौतों में राजनीतिक और सुरक्षा चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यूएन में भारत का यह रुख पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय दोनों के लिए संदेश है कि सहयोग तभी स्थायी और उपयोगी हो सकता है जब वह भरोसे और कानून के दायरे में आधारित हो, न कि आतंक और हिंसा पर।
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